(गीता-23) गीता की वो एक बात, जिसके बाद कुछ बचता नहीं || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2023)

2024-08-03 6

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वीडियो जानकारी: 13.09.23, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥

हे महाबाहो ! जो तत्वज्ञानी होते हैं, जो जानते हैं, वो कहते हैं कि सत, रज, तम इन्हीं गुणों से उत्पन्न इंद्रियाँ, इन्हीं गुणों से उत्पन्न रूप-रस आदि में बरत रही हैं, और ये जानकर वो फिर लिप्त भी नहीं होते और 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा अभिमान भी नहीं करते।
~ श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक 3.28


~ अध्यात्म को जटिल क्यों बना दिया?
~ अध्यात्म में पाखंड, अंधविश्वास, मान्यताएं कैसे आ गई?
~ कहाँ लुटने की संभावना कम हो जाती है?
~ आत्मज्ञान किसके समान होता है?
~ चीज़ों को जानना, समझना क्यों ज़रूरी है?
~ कोई सीधी, सरल बात को घुमाता क्यों है?
~ आनंद कहाँ है?
~ तत्वज्ञ कौन है?
~ सरलता क्या मांगती है?

संगीत: मिलिंद दाते
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